यह सवाल बना हुआ है कि क्या मुस्लिम लड़कियां शैक्षणिक संस्थानों में पर्दा पहन सकती हैं। ऐसे में कुछ शिक्षण संस्थानों ने बुर्का पहनने पर रोक लगा दी है।
कुछ महीने पहले चेंबूर के आचार्य और मराठा कॉलेज ने छात्राओं के कॉलेज परिसर के अंदर पर्दा पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था। अल्पसंख्यक छात्रों में इसका कड़ा विरोध हुआ। कॉलेज प्रशासन के फैसले को चुनौती देते हुए नौ छात्रों ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। अपनी याचिका में उन्होंने कॉलेज प्रशासन के फैसले को मनमाना, भेदभावपूर्ण और अपनी पसंद की स्वतंत्रता से वंचित करने वाला कृत्य बताया था।
अपनी याचिका में छात्राओं ने कहा था कि पर्दा पहनना उनके धर्म में एक आवश्यक प्रथा है और कॉलेज प्रशासन द्वारा लगाए गए ड्रेस कोड से उनके अधिकार और निजता प्रभावित हुई है।
यह याचिका न्यायमूर्ति चंदुरकर और न्यायमूर्ति राजेश पाटिल की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई थी। कॉलेज की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल अंदुरकर ने कहा कि कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा था कि पर्दा पहनना इस्लाम में मौलिक प्रथा नहीं है।
उन्होंने कहा कि इस्लाम में पर्दा पहनना अनिवार्य नहीं है। कॉलेज प्रशासन ने छात्रों के धर्म को उजागर न करने के इरादे से यह फैसला लिया है। छात्राओं के कल्याण, अनुशासन और प्रशासनिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया गया है।
हम इस संबंध में कर्नाटक उच्च न्यायालय की टिप्पणियों से सहमत हैं। ड्रेस कोड का उद्देश्य छात्रों के बीच एकता पैदा करना है। कॉलेजों को अपने संस्थानों में अनुशासन बनाए रखने का अधिकार है। ड्रेस कोड बिना किसी भेदभाव के सभी छात्रों के लिए लागू किया गया है।